अजबलाल कभी कभी ग़ज़ब की बात करते हैं । अजबलाल जी का कहना है जिस चीज़ से जीवन चल रहा है वहीं सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अजब लाल जी ने एक कवि की कुछ पंक्तियाँ सुनाई-
भाई जैसा बल नहीं
सूरज जैसी जोत
गंगाजल सा जल नहीं
सत्ताभोग सा भोग
अजबलाल जी इस कविता को यथार्थ से परे बताते हैं उनका कहना है कि चाहे भाई कितना भी बलवान हो अकेले मे भाई का बल काम नहीं आएगा और अंधे को सूरज की ज्योति से कोई लाभ नहीं होगा । गंगाजल से ज़्यादा ज़रूरी वह जल है जिसे हम रोज़ पीते हैं ( गाँव में लोग पीने के पानी के लिए एक बर्तन उपयोग करते हैं जिसे दबकी कहते हैं ) और सत्ताभोग से बड़ा अन्नभोग है क्योंकि अन्न के बिना जीवन सम्भव नहीं है । अजबलाल जी इस कविता को दुरुस्त करते हुए कहते हैं –
खुद के बल सा बल नहीं
नयन जोत सी जोत
दबकी जैसा जल नहीं
अन्न भोग सा भोग