इंटर कॉलेज में हमारे पढ़ाई के दिनों में मेरे सहपाठी देवेंद्र थापा के बड़े भाई राजेंद्र थापा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कबीरदास जी का भजन गाते थे – चदरिया झीनी रे झीनी । स्वयं ही हारमोनियम बजाते थापा जी ग़ज़ब समाँ बाँध देते थे । इस भजन का एक एक शब्द अनमोल है । कबीर ने शरीर को चादर कहा है । बनाने वाले ने बड़े जतन और बड़े होश से इस शरीर को बनाया है । मूरख लोग इस चादर को मैली कर देते हैं ( अष्ट कमल का चरखा बनाया पाँच तत्व की पूनी , नौ दस मास बुनन को लागे मूरख मैली किन्ही ) लेकिन संत कबीर जैसे जागृत पुरुष इसे बिल्कुल मैली नहीं करते ( दास कबीर ने एसी ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीनी) । कबीर दास जी ने इस भजन में बताया है जीवन एक अभिनय है चाहे मंच कितना बड़ा हो इससे अधिक कुछ नहीं । इससे अधिक माना तो भटके ।