प्रताप सिंह अब काफ़ी बुजुर्ग हो चुके हैं । छात्र जीवन में वे बड़े बिगड़ैल टाइप छात्र नेता थे बात बाद में करते थे उनका हाथ पहले उठता था । उनकी दबंगई के कारण उन्हें झिमोड़ दा के उपनाम से जाना जाता था । उम्र बढ़ने के साथ झिमोड़ दा को झिमोड़ी का कहा जाने लगा । झिमोड़ ततैया टाइप होता है । अगर आँख के आस पास काटे तो आँखे सूज जाती है । अक्सर पहाड़ में घास काटते समय झिमोड से आमना सामना होता है । हमारे चाचा मदन सेठ जी रामलीला में एक गाना गाते थे – ब्वारिक ख़्वारा में किलिप चमकनी सासू का ख़्वारा ने झिमोड रमक़नी (मतलब – बहू के सिर में तो नए जमाने की हेयर क्लिप चमक रहे हैं जबकि घास काटती सास के सिर में झिमोड़ अटैक कर रहे हैं )।
झिमोड़ी का अपने छात्र जीवन के क़िस्से सुनाते समय पहाड़ के अधिकतर बुजुर्गों की तरह अपने संघर्ष की गाथा को बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं लेकिन राजनीति के चतुर सुजान झिमोड़ी का आज भी बड़े बड़े राजनैतिक विश्लेषकों को मात देने का माद्दा रखते हैं । उनका चुनावी पूर्वानुमान बड़ा सटीक होता है ।