संघर्ष

रसिक लाल आज अपने संघर्ष की कहानी सुना रहे थे कि उन्होंने छात्र जीवन में बड़ा संघर्ष किया 10 किलोमीटर चलकर स्कूल जाते थे रास्ते में नदी पड़ती थी उसे तैरकर पार करते थे । घर में ग़रीबी थी मेहनत मजदूरी भी करते थे । पढ़ाई पूरी करके रोज़गार के लिए बड़े धक्के खाए । रसिक लाल आज पूरे रंग में थे और अपनी संघर्ष गाथा धाराप्रवाह सुना रहे थे तभी वहाँ अंगूर के दामाद अनीस भाई (शराब (अंगूर की बेटी) के नियमित सेवन के कारण अनीस भाई को अंगूर का दामाद कहा जाता है ) वहाँ पहुँचे और उन्होंने रसिक लाल की संघर्ष गाथा में रंग में भंग डाल दिया ।
चार पेग लगाने के बाद परम अवस्था को प्राप्त अनीस भाई रसिक लाल पर बरस पड़े और आँखे ततेर कर बोले – रसिक लाल तुम इन छोटी मोटी बातों को संघर्ष कहते हो इसका मतलब तुम्हें संघर्ष के मायने ही नहीं पता ।
तुम दस किलोमीटर चलकर स्कूल जाते थे इसमें संघर्ष जैसा कुछ भी नहीं क्या तुम सोचते हो कि स्कूल चलकर तुम्हारे घर आता । ईश्वर ने पैर तुम्हें दिए तो चलकर तुम ही जाओगे । रास्ते में नदी पड़ती थी उसे रोज़ तैर कर जाते थे तो भी तुमने किसी तैराकी प्रतियोगिता में कोई मेडल नहीं जीता लानत है एसी तैराकी पर । तुम्हारे जमाने में रोज़गार की कोई कमी नहीं थी फिर भी तुम्हें धक्के खाने पड़े जिससे पता चलता है कि तुम कितने बड़े जड़ बुद्धि थे ।
रसिक लाल को अनीस भाई की बात नागवार गुजरी और दोनों में कहा सुनी शुरू हो गई । तभी देवयोग से वहाँ केटालिंक डीग़र दा पहुँच गए और लड़ाई को आगे बढ़ाने को अपना पूरा अनुभव झोंक दिया और कहासुनी को हाथापाई में तब्दील करवा के ही दम लिया ।
आज रसिक लाल और अनीस भाई दोनों अस्पताल में भर्ती हैं और डीग़र दा दोनों की तीमारदारी में मशगूल हैं ।

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