नास्तिक

मेरा एक मित्र जो एक बहुत सम्पन्न परिवार से ताल्लुक़ रखता है कई वर्षों बाद मिला। पढ़ाई लिखाई में बेहद प्रतिभाशाली मेरे मित्र ने जो दौलत और शोहरत हासिल की उसे देखकर मन प्रफुल्लित हुआ। हम बातों में मशगूल थे तभी बातों बातों में धर्म की चर्चा छिड़ गई । मित्र बोला मैं कट्टर नास्तिक हूँ मैं किसी धर्म या ईश्वर को नहीं मानता । ये बात मुझे बेहद नागवार गुज़री, हालाँकि मैंने कोई प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझा । जब सालों बाद किसी अभिन्न मित्र से मुलाक़ात हो तो उसमें बहस बाज़ी का कोई स्थान नहीं रहता ।
जब मैं घर पहुँचा तो मित्र की बात याद करके मेरी हँसी नहीं रुक रही थी । आप केवल इसलिए नास्तिक नहीं हो सकते कि आप किसी धर्म या ईश्वर में विश्वास नहीं करते, आप नास्तिक तब होते हो जब आप अपने आप में विश्वास नहीं करते।
मनुष्य जीवन ईश्वर की अमूल्य देन है । अपने पर विश्वास करने वाला आस्तिक और अपने पर विश्वास ना करने वाला नास्तिक होता है ।
परमपिता परमात्मा की सत्ता को आपके विश्वास करने ना करने से क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा । ये समस्त सृष्टि ईश्वर की सत्ता और उसकी स्थापित व्यवस्था द्वारा संचालित है । ईश्वर की सत्ता लोकतांत्रिक नहीं है । ईश्वर को सत्ता में बने रहने के लिए आपके मत की आवश्यकता नहीं है। परम सत्ता चिर स्थाई है इसमें पाँच साल में चुनाव का कोई प्रावधान नहीं है । आप अपना मत अपने पास संभाल कर रखिए क्योंकि आपको मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर नहीं मिलने वाला ।
संसार में सब कुछ परम सत्ता के अधीन है । कर्मफल की एसी शानदार व्यवस्था भला कौन कर सकता है । अरबों खरबो जीव सृष्टि में और सारी जीवन दायिनी ज़रूरत की व्यवस्था प्रकृति ने मुफ्त में कर रखी है । ग़लत काम करने वालों की देर सवेर दंड मिलता है । अच्छे काम करने वालों को उनके कामों का सुफल मिलता है, क्या एसी व्यवस्था ईश्वर के अलावा कोई और कर सकता है ।

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