समुद्र मंथन के संदेश

समुद्र में विभिन्न प्रकार के रत्न पाए जाते हैं इसीलिए इसका एक नाम रत्नाकर भी है । देवताओं और असुरों ने वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया था जिसमें कई दुर्लभ रत्न मिले । ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं ने वासुकि की पूँछ वाला हिस्सा पकड़ा जबकि मूर्ख असुरों ने मुँह वाला हिस्सा पकड़ा जिससे विष के प्रभाव के कारण कई असुर मारे गए । समुद्र मंथन से निकले हलाहल को पीने के लिए भोलेनाथ को बुलाया गया जबकि अमृत पूँछ पकड़ने वाले देवताओं के हिस्से में आया और समुद्र मंथन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले असुरों के हिस्से में मदिरा आई ।
समुद्रमंथन से हमें यही शिक्षा मिलती है कि जो वास्तविक काम करेगा उसे कुछ हासिल नहीं होगा, चालाक लोग काम के समय पीछे और काम का ईनाम मिलते समय आगे रहेंगे । जो भोला भाला होगा उसके हिस्से में सदा विष ही आएगा ।
समुद्र मंथन की कथा आज भी प्रासंगिक हैं अगर आप ज़रूरत से ज़्यादा प्रयास कर रहे हैं तो एक बार ध्यान से अवलोकन करें कि गलती से किसी कुटिल के अमृतपान का इंतज़ाम तो नहीं कर रहे हैं । कड़ी मेहनत अवश्य करें लेकिन पर्याप्त सावधानी भी बरतें ।

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