अलख निरंजन

अलख निरंजन खोल दे बंधन तोड़ दे ताला

मुँह पर मीठा बोल चाहे तू मन का हो काला

मन कोई देखता नहीं ज़माना है दिखावे वाला

उल्टे कर काम सीधे कामों की जप तू माला

तीर तुझसे चलता नहीं सपने में चलाता भाला

करामातों से तूने सभी को खुश कर डाला

जो ना आया क़ाबू उसे चकमे से मार डाला

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